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History of Rajput Period |
राजपूत काल
अग्निकुल सिद्धान्त के अनुसार चार राजपूत कुलों-परमार, प्रतिहार, चौहान तथा चालुक्यों का उद्भव आबू पर्वत पर वशिष्ठ द्वारा किए गए यज्ञ की अग्निकुण्ड से हुआ।
गुर्जर-प्रतिहार वंश
* हर्षवर्द्धन की मृत्यु के बाद गुर्जर-प्रतिहारों ने कन्नौज पर नियन्त्रण कर उत्तर भारतीय साम्राज्य की स्थापना की।
* हरिश्चन्द्र ने प्रतिहार राजवंश की नींव रखी। नागभट्ट I इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था।
* नागभट्ट I के बाद वत्सराज प्रतिहार शासक हुआ, जिसके बारे में जैन ग्रन्थ कुवलयमाला तथा हरिवंशपुराण से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
* नागभट्ट II ने पाल नरेश धर्मपाल को हराया, किन्तु राष्ट्रकूट शासक गोविन्द II से हारा।
* मिहिर भोज (836-885 ई.) ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया। मिहिर भोज के बाद उसका पुत्र महेन्द्रपाल I शासक हुआ।
* महेन्द्रपाल I के बारे में राजतरंगिणी से महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं।
* राजशेखर जिसने काव्यमीमांसा लिखी, महेन्द्रपाल के दरबार में था। राजशेखर ने कर्पूर मंजरी, काव्यमीमांसा विशालभंगिका, बालभारत, बालरामायण, भुवनकोश, हरविलास जैसे प्रसिद्ध जैन ग्रन्थों की रचना की।
* यशपाल प्रतिहार वंश का अन्तिम शासक था, जिसने महमूद गजनवी के आक्रमण का सामना करने के लिए अपनी सेना कश्मीर भेजी थी। अनंगपाल ने दिल्ली में तोमर वंश की स्थापना की।
चालुक्य (सोलंकी) वंश
* चालुक्य वंश की एक शाखा दक्षिण भारत में थी, जबकि दूसरी शाखा गुजरात में स्थित थी। इसकी राजधानी अन्हिलवाड़ में थी।
* गुजरात के चालुक्य वंश के शासकों को अग्निकुण्डीय राजपूत माना जाता है।
* मूलराज I चालुक्य वंश का पहला प्रतापी शासक था। उसका उत्तराधिकारी चामुण्डराय था।
* चालुक्य शासक भीमराज प्रथम के शासनकाल में 1025 ई. में महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मन्दिर को लूटा था।
* भीम प्रथम के सामन्त विमलशाह ने आबू पर्वत पर दिलवाड़ा का प्रसिद्ध जैन मन्दिर बनवाया।
* प्रसिद्ध जैन विद्वान् हेमचन्द्र जयसिंह सिद्धराज के दरबार में था। जयसिंह ने सिद्धपुर में रुद्र महाकाल का मन्दिर बनवाया।
* कुमारपाल I चालुक्य वंश का महत्त्वपूर्ण शासक था, जिसने जैन धर्म को संरक्षण प्रदान किया।
* प्रसिद्ध अपभ्रंश रचनाकार हेमचन्द्र कुमारपाल प्रथम का दरबारी कवि था ।
* कुमारपाल I के उत्तराधिकारी भीम II के समय 1197 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने अन्हिलवाड़ पर आक्रमण कर चालुक्य वंश के शासन को समाप्त कर दिया।
गहड़वाल वंश
* प्रतिहार वंश के पतन के बाद कन्नौज पर गहड़वालों का नियन्त्रण हुआ।
* चन्द्रदेव गहड़वाल वंश का प्रथम शासक था। इस वंश का एक प्रमुख शासक गोविन्द चन्द्र था।
* गोविन्द चन्द्र के बाद विजयचन्द्र शासक हुआ। उसने लाहौर को जीत लिया था।
* जयचन्द गहड़वाल वंश का अन्तिम प्रमुख शासक था। उसकी पुत्री संयोगिता थी।
* जयचन्द का बंगाल के सेन शासक लक्ष्मण सेन तथा पृथ्वीराज चौहान के साथ संघर्ष हुआ।
* 1193 ई. में चन्दावर के युद्ध में मुहम्मद गोरी ने जयचन्द को पराजित किया। इसके साथ ही कन्नौज पर तुर्कों का अधिकार हो गया।
* जयचन्द के दरबार में नैषधचरित एवं खण्डनखाद्य का लेखक श्रीहर्ष रहता था।
चौहान वंश
* चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव था। वह प्रतिहारों का सामन्त था। अजयपाल ने अजमेर नगर की स्थापना की।
* पृथ्वीराज III 1178 ई. में चौहान वंश का शासक बना। उसे राय पिथौरा भी कहा जाता था।
* पृथ्वीराज ने चन्देल नरेश परमर्दिदेव को हराया।
* 1191 ई. में तराइन की प्रथम लड़ाई में पृथ्वीराज III ने मुहम्मद गोरी को पराजित किया, किन्तु 1192 ई. में मुहम्मद गोरी से पराजित होने के बाद उसे बन्दी बना लिया गया।
* चन्दबरदाई पृथ्वीराज III का दरबारी कवि था, जिसने पृथ्वीराज रासो की रचना की।
* जयनाक ने पृथ्वीराज विजय नामक संस्कृत काव्य की रचना की।
* गुजरात के शासक भीमदेव II तथा कन्नौज के शासक जयचन्द के साथ पृथ्वीराज III ने संघर्ष किया।
चन्देल वंश
* चन्देलों को 36 राजपूत राजवंशों में से एक माना जाता है। ये प्रारम्भ में प्रतिहारों के सामन्त थे।
* 9वीं शताब्दी में नन्नुक ने चन्देल वंश की स्थापना की।
* वाकपति तथा जयसिंह या जेजा प्रारम्भिक चन्देल शासक थे। जेजा के नाम पर ही चन्देल क्षेत्र को जेजाकभुक्ति भी कहा गया।
* धंग (950-1102 ई.) ने महमूद गजनवी के विरुद्ध हिन्दुशाही शासक जयपाल की सहायता के लिए सेना भेजी थी।
* धंग ने पाल शासकों को पराजित कर बनारस पर अधिकार किया।
* धंग एक महान् निर्माता था, जिसने खजुराहो में अनेक भव्य मन्दिरों का निर्माण करवाया।
* यशोवर्मन ने खजुराहो के प्रसिद्ध विष्णुमन्दिर (चतुर्भुज मन्दिर) का निर्माण करवाया। इसके अतिरिक्त उसने एक विशाल जलाशय का भी निर्माण करवाया।
* चन्देल शासक धंग ने अपने अन्तिम समय में प्रयाग के संगम पर अपने जीवन का अन्त कर लिया।
* गंड धंग का पुत्र था, जिसने कन्नौज के शासक राज्यपाल को पराजित करने के लिए विद्याधर को भेजा ।
* विद्याधर चन्देल शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। मुसलमान लेखक उसका नाम नन्द तथा विदा नाम से करते हैं।
* विद्याधर ने महमूद गजनवी का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया।
* गंड के बाद विद्याधर, विजयपाल, कीर्तिवर्मा तथा मदनवर्मा चन्देल शासक हुए। परमार्दिदेव (1165-1203 ई.) अन्तिम चन्देल शासक था, जिसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने पराजित कर कालिंजर पर अधिकार किया।
* आल्हा उदल परमार्दिदेव के दरबार में थे ।
परमार वंश
* परमार वंश का प्रथम स्वतन्त्र एवं शक्तिशाली शासक सीयक अथवा श्री हर्ष था।
* 9वीं शताब्दी में उपेन्द्र कृष्णराज ने मालवा में परमार वंश के शासन की स्थापना की और उज्जैन को राजधानी बनाया।
* मुंज प्रसिद्ध परमार शासक था, जिसने चालुक्य शासक तैलप II को 7 बार हराया तथा पद्मगुप्त, धनंजय, धनिक तथा भट्ट जैसे विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। पद्मगुप्त ने नवसाहसांक चरित लिखा ।
* मुंज ने धार के निकट मुंजसागर झील का निर्माण करवाया।
* भोज द्वारा लिखित ग्रन्थों में चिकित्सा शास्त्र पर आयुर्वेद सर्वस्व तथा स्थापत्यशास्त्र पर समरांगणसूत्रधार विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
* भोज (1000-1055 ई.) परमार वंश का महान् शासक था। वह एक प्रसिद्ध रचनाकार था। इसने धारा को नई राजधानी बनाया और वहाँ सरस्वती मन्दिर बनवाया।
* भोज द्वारा लिखित ग्रन्थों में चिकित्सा शास्त्र पर आयुर्वेदसर्वस्व तथा स्थापत्य शास्त्र पर समरांगण सूत्रधार विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
* भोज ने धारा में एक विद्यालय स्थापित किया तथा भोजपुर नगर की स्थापना की।
* परमार वंश के अन्तिम शासक महलक देव को अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति आईन-उल-मुल्क ने पराजित किया तथा मालवा को दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया।
कलचुरि वंश
* कोल्ल I ने 845 ई. में कलचुरि वंश की स्थापना की।
* गांगेयदेव विक्रमादित्य (1019-1041 ई.) ने लक्ष्मी शैली के सिक्के चलाए । राजपूत राजाओं में सर्वप्रथम उसी ने स्वर्ण सिक्के चलाए। वह शैव था।
* लक्ष्मीकर्ण ने त्रिकालिंगाधिपति उपाधि धारण की। कर्णमेह नामक शैव मन्दिर बनवाया एवं कर्णावती नगर की स्थापना हुई। प्रसिद्ध कवि राजशेखर इसकी राजसभा में थे।
महत्वपूर्ण तथ्य
* ग्वालियर प्रशस्ति में नागभट्ट प्रथम को 'म्लेच्छों' का नाशक बताया गया है।
* महिपाल के शासन काल में बगदाद निवासी अल मसूदी गुजरात आया था।
* राजशेखर को महेन्द्र पाल प्रथम तथा महिपाल दोनों ने संरक्षण प्रदान किया था।
* आइने अकबरी के अनुसार भोज की राजसभा में पाँच सौ विद्वान् थे।
* 10 परमारों की कल्याणी के चालुक्यों से शत्रुता का उल्लेख भोज चरित में हुआ है।
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